ग्लोबल वार्मिंग का ग्लेशियर पर प्रभाव ( Effect of Global Warming on Glaciers)

 Global Warming का कारण :


आज आधुनिक युग में तरह-तरह के सुख सुविधाओं को प्रदान करने वाले एपलियंस का निर्माण हो रहा है ।जिनसे उत्पन्न होने वाली गैसें हमारे वायुमंडल को तथा वातावरण को प्रभावित कर रही हैं । इनमें से ही कुछ खास गैसें है जिनके विषय में हम आगे चर्चा करने जा रहे हैं 

इनमें से कुछ वायु प्रदूषक (air pollutants) जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड ,नाइट्रस ऑक्साइड ,मीथेन आदि है जो वातावरण में अधिक मात्रा में एकत्र होकर पृथ्वी से वापस जाने वाली हीट अर्थात ऊष्मा(Heat) को रोक लेते हैं, जिससे हमारे वायुमंडल का तापमान(temperature) बढ़ रहा है। इसको ही हम ग्रीनहाउस प्रभाव या पौधाघर प्रभाव कहते हैं।


Green House    🏠 🍏🍏🍏


आखिर ग्रीनहाउस होता क्या है चलिए जान लेते हैं आज  ग्रीनहाउस के बारे में , ग्रीनहाउस हरे काँच की दीवारों से एक कमरा जैसी जगह बनायी जाती है। यह प्रायः ठंडे इलाको में बनाया जाता है। इसके अन्दर गर्मी के मौसम की फसलों को उगाया जाता है। इस हाउस के अन्दर का तापमान बाहर की अपेक्षा काफी अधिक होता है ,क्योंकि इस घर की काँच की दीवारें सौर विकिरण को अन्दर प्रवेश करने देती हैं, लेकिन इसमें उत्पन्न ऊष्मा(heat) को बाहर बहुत कम निकलने देती हैं। और परिणाम स्वरूप इसके अन्दर का तापमान(temperature) बढ़ जाता है। और इस प्रकार ग्रीन हाउस प्रभाव कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। इस प्रकार इस Green House से विपरित मौसम होने पर भी आगामी फसलों और सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।



 जिस प्रकार एक ग्रीन हाउस के कांच द्वारा सूर्य का प्रकाश अंदर तो प्रवेश कर जाता है पर बाहर बहुत ही कम मात्रा में निकल पाता है,जिससे वहां तापमान बढ़ने लगता है। उसी आधार पर हमारी पृथ्वी के तापमान में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है जिसे हम ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। जो वायु प्रदूषक(air pollutants) गैसें इस ग्रीन हाउस प्रभाव को प्रभावित करती हैं उन्हें हम ग्रीन हाउस गैसें कहते हैं। इन्हीं गैसों की वजह से हमारी पृथ्वी पर ग्रीन हाउस प्रभाव का संकट खड़ा हो रहा है। इन गैसों की वजह से हमारे वायुमंडल के ऊपर एक परत बन जाती है जिससे भेद कर ऊष्मा(heat) ऊपर नहीं निकल पाती जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान(temperature) बढ़ने लगता है ।


कुछ मुख्य ग्रीन हाउस गैसें निम्नलिखित है जो ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित कर रही हैं-

  • क्लोरोफ्लूरोकार्बन (CFCs)
  • मीथेन(CH₄)
  • नाइट्रस ऑक्साइड(N2O)
  • कार्बन डाइऑक्साइड( CO2)
  • हेलनस ( हेलो कार्बन्स,Cx, Fx, Brx )

ग्रीनहाउस का ग्लेशियर पर प्रभाव-

हमारे वैज्ञानिकों का ऐसा आनुमान है, कि अगर इसी तरह ग्रीन हाउस गैसें हमारे वायुमंडल में बढ़ती रही तो सन 2050 ई. तक हमारी पृथ्वी के औसत तापमान(temperature) में 5 सेल्सियस तक वृद्धि हो जाएगी। जिसके कारण ध्रुवों पर जमी बर्फ तथा बर्फ के ग्लेशियर पिघलने लगेंगे जिसके फलस्वरूप समुद्र में अधिक जल एकत्रित हो जाएगा जिसका परिणाम यह होगा कि समुद्र तटीय इलाकों में बाढ़ आ जाएगी जिससे वह भाग जलमग्न हो जाएंगे। इस स्थिति में बोस्टन, न्यूयॉर्क ,मियामी एवं गेलवेस्टन जैसे बड़े महानगरों के नष्ट होने का खतरा बन जाएगा। हमारे भारतवर्ष में भी ग्रीन हाउस के प्रभाव के कारण कोलकाता, मुंबई ,पणजी ,त्रिवेंद्रम ,कोचीन आदि बाढ़ में तथा इस त्रासदी में जलमग्न हो जाएंगे।

ओजोन कवच में होल के कारण होने वाले दुष्प्रभाव--


हमारी पृथ्वी के वायुमंडल को 2 परतों(layers) में विभाजित किया जा सकता है । हम सब वायुमंडलीय गैसों से युक्त छोभमंडल या ट्रोपोस्फीयर में रहते हैं । हमारी पृथ्वी से 50 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल या स्ट्रेटो स्फीयर मैं ओजोन का कवच (ozone shield) स्थित होता है ,जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करता रहता है। पराबैगनी किरणों से उत्परिवर्तन(mutation) त्वचा का कैंसर तथा मोतियाबिंद जैसे घातक रोग उत्पन्न होते हैं ,इन किरणों से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ।



 ओजोन कवच के ना होने से हमारा स्वास्थ्य तथा भोजन के स्रोत भी बहुत प्रभावित होंगे।  स्ट्रेटोस्फीयर में प्राण रक्षक ओजोन की परत पतली होती चली जा रही है इस ओजोन की पतली परत को ओजोन छेद (ozone hole) भी कहते हैं। ऐसा ही चलता रहा तो हमारी ओजोन परत बहुत कमजोर हो जाएगी जिसके कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें धरती तक आने लगी जिसके कारण यहां का तापमान बढ़ जाएगा जो कि जीवन के लिए संकट का कारण बन सकता है।


स्ट्रेटोस्फीयर में क्लोरीन परमाणु के विसरण से ओजोन की परत  कमजोर होती है। तथा इस क्लोरीन का एक परमाणु 100000 ओजोन के आणुओं को नष्ट कर सकता है । यह क्लोरीन परमाणु क्लोरोफ्लूरोकार्बन(CFCs )के विघटन से उत्पन्न होता है।




फ्रेयान एक सर्वाधिक घातक क्लोरोफ्लूरोकार्बन है। यह रेफ्रिजरेटर ,एयर कंडीशनर ,फोम के गद्दे ,एरोसॉल आदि के स्प्रे मैं प्रयुक्त क्लोरोफ्लूरोकार्बन होता है ,जो हमारी ओजोन को प्रभावित करता है । रेफ्रीजनरेटर तथा एयर कंडीशनर दोनों ही  क्लोरोफ्लूरोकार्बन का उत्सर्जन करते हैं अतः इनका प्रयोग कम करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सहमति जताई थी। 


कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के स्रोत:

हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड 0.3% उपस्थित है जोकि हमारी पृथ्वी का तापमान को संतुलित करने के लिए जिम्मेदार है परंतु आधुनिक वातावरण तथा विकास की दौड़ में आज अनेक परिस्थितियां जिम्मेदार है CO2 में वृद्धि के लिए।
अनेक औद्योगिक क्षेत्रों में निकलने वाले धुएं से CO2 भारी मात्रा में उत्सर्जित की जा रही है लकड़ी कोयला इन सब के जलने से भी CO2 काफी मात्रा में उत्सर्जित की जा रही हैं, एयर कंडीशनर , रेफ्रिजरेटर तथा अनेक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के द्वारा आज CO2 भारी मात्रा में निकल रही है इन सभी गैसों के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

















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