नीति निदेशक तत्व क्या है ?

नीति निदेशक तत्व क्या है ?


आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश एक अहम भूमिका निभाते हैं। किसी भी राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व होते हैं। सर्वप्रथम ये आयरलैंड (Ireland) के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ-साथ ही विकसित हुये है। इन तत्वों का मुख्य कार्य एक जन कल्याणकारी राज्य (welfare state) की स्थापना करना है।








भारतीय संविधान(Indian constitution) के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को शामिल किया गया है। भारतीय संविधान(Indian constitution)  के भाग 3 तथा 4 के संयुक्त रुप को संविधान की आत्मा तथा चेतना कहा जाता है। इन नीती निर्देशक तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित हैं। निदेशक तत्व कार्यपालिका और विधायिका के वे तत्व होते हैं, जिनके अनुसार इन्हे अपने अधिकारों का प्रयोग सुनिश्चित करना होता है।

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अनुच्छेद- 37 के अनुसार ये तत्व किसी भी न्यायालय मे लागू नही करवाये जा सकते हैं , बल्कि यह तत्व वैधानिक न होकर राजनैतिक स्वरूप रखते है, तथा मात्र केवल नैतिक अधिकार मात्र रखते है। वे न तो कोई वैधानिक बाध्यता ही राज्यों पे लागू करते है और न ही जनता हेतु अधिकार कर्तव्य। ये मात्र राज्य के लिये ऐसे सामान्य निर्देश है कि राज्य कुछ ऐसे कार्य करे जो राज्य की जनता के हित के लिये लाभदायक सिद्ध हो। इन निर्देशों का पालन कार्यपालिका की नीति तथा विधायिका की विधियों से ही हो सकता है। इसमें अभी तक कुल 4 बार संशोधन हो चुका है 42,44,86 और 97।

नीति-निर्देशक तत्व वह सिद्धांत है, जो किसी भी राष्ट्र कि जनता की भलाई एवं देश में सामाजिक तथा आर्थिक प्रजातंत्र को स्थापित करने के लिए राज्य को काम करने की दृष्टि से प्रेरणा स्रोत हैं । नीति-निर्देशक तत्वों का अर्थ ऐसे सिद्धांतों से है जिन्हें राज्य अपनी नीतियों तथा कानूनों को बनाते समय ध्यान में रखें ।


डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने इनके विषय में कहा है, राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य जनता के कल्याण को बढ़ावा देनेवाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है ।

डाॅ.भीम राव अम्बेडकर के अनुसार, अन्य बातों के साथ-साथ निर्देशक सिद्धांत विशेष रूप से सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से बनाये गये हैं ।











भारतीय संविधान में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित हैं, जिसका विवरण है ---

अनुच्छेद 36 - राज्य की परिभाषा का वर्णन किया गया है

अनुच्छेद 37 - इस भाग में अंतर्विष्‍ट तत्‍वों का लागू होना अनिवार्य है ये न्यायालय द्वारा अप्रवर्तनीय है।

अनुच्छेद 38 - राज्य लोक-कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनायेगा ।

अनुच्छेद 39 - समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता देना ।

अनुच्छेद 40 - ग्राम पंचायतों का संगठन ।

अनुच्छेद 41 - कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता प्रदान करने का अधिकार ।

अनुच्छेद 42 - काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता का उपबंध् ।

अनुच्छेद 43 - कर्मचारियों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि ।

अनुच्छेद 44 - नागरिकों के लिए एकसमान सिविल संहिता ।

अनुच्छेद 45 - बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा ।








अनुच्छेद 46 - अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि ।

अनुच्छेद 47 - पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को उँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधर करने हेतु राज्य का कर्तव्य । 

अनुच्छेद 48 - कृषि और पशुपालन का संगठन ।

अनुच्छेद 49 - राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों का संरक्षण ।

अनुच्छेद 50 - कार्यपालिका से न्यायापालिका का पृथक्करण ।

अनुच्छेद 51- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि।

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